हथेली की विशिष्टता - Astro Star India -

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हथेली की विशिष्टता

हथेली किस तरह बाकी अंगों से अलग है ?



   शरीर विज्ञानियों के अनुसार मनुष्य के हाथों में तंत्रिकाओं का सबसे उन्नत जाल होता है, इसीलिए जिस स्पर्श को किसी भी और अंग की त्वचा स्पर्श से महसूस नहीं कर पाती वो स्पर्श भी हथेली की अंगुलियों के पोरों द्वारा जान ली जाती है। यहां तक कि शरीर के अन्दर बह रहे रक्त की हरकत को भी अंगुलियों के पोरों के स्पर्श द्वारा जाना जा सकता है। यह स्पर्श शरीर के किसी भी और अंग के द्वारा संभव नहीं हो सकता है।

   नाड़ी विज्ञानी अंगुलियों के पोरों के स्पर्श द्वारा ही पूरे शरीर का हाल जान लेते हैं। इस प्रकार हाथ की चैतन्यता का स्तर अन्य शारीर अंगो की अपेक्षा सबसे उन्नत है। यही हाल हमारे पैरों की चैतन्यता के बारे में भी कहा जा सकता है, हालांकि वहां की चैतन्यता का स्तर हथेली से कम है, फिर भी अन्य अंगों की त्वचा से अधिक है। हथेली की त्वचा अन्य अंगों की त्वचा से अलग होती है। और इस त्वचा में कोई भी बदलाव मनुष्य की तंत्रिकातंत्र से संचालित होता है। तंत्रिकाएं दो प्रकार की होती हैं, एक वे जो शरीर के संदेश मस्तिष्क तक पंहुचाती हैं वे संवेदी तंत्रिकाएं कहलाती हैं। जबकि मस्तिष्क के संदेशों को शरीर के संभी अंगों तक पहुचाने वाली तंत्रिकाओं को प्रेरक तंत्रिकाएं कहा जाता है। ये तंत्रिकाएं संवेदनाओं को संचारित करने का कार्य एड्रिलिन और नोरएड्रिलिन नाम के हार्मोन के द्वारा विद्युत तरंगे उत्पन्न करके करती हैं। यही विद्युत तरंगे हथेली की रेखाओं की बनावट के लिए जिम्मेदार हैं।

क्यों हर मनुष्य की हस्तरेखाएं विशिष्ट होती हैं !

  एक मनुष्य की हस्तरेखाएं किसी भी दूसरे मनुष्य की हस्तरेखाओं से हू ब हू नहीं मिलती हैं। सभी के हाथ को जैसे ईश्वर ने उसी के लिए तैयार किया है। हर व्यक्ति के हाथ की बनावट, हाथों की रेखाएं, नाखून की बनावट, अंगुलियों के पोरों के विभाजन आदि में दूसरे व्यक्ति के हाथ से भिन्नता जरूर होती है। हमारे हाथ की रेखाओं का सीधा संबंध हमारे विचारों और मानसिक क्रियाओं से है। हमारे विचारों में आए परिवर्तन को हम हाथ की रेखाओं में स्पष्ट रूप से बदेख सकते हैं। यही वो कारण है जिससे हमारे हाथ की रेखाएं ताउम्र बनती और मिटती रहती हैं। कुछ रेखाएं किशोर वय में होती हैं लेकिन युवावस्था तक आते आते मिट जाती हैं या धुंधली पड़ जाती हैं, कुछ रेखाएं युवावस्था में ही बनना शुरू होती हैं। इस प्रकार हाथ की रेखाएं हमारे मन और मस्तिष्क में चल रही सभी गतिविधियों का आईना होती हैं।
 
19 वीं सदी के चिकित्सकों ने भी इस तथ्य को स्वीकार किया कि हमारे तंत्रिकातत्र पर ही हाथ की रेखाएं निर्भर होती हैं। चिकित्सा विज्ञान भी आज नाखुनों के रंग, बनावट और प्रकार से रोगों की भविष्यवाणी करने लगे हैं; जैसे गंभीर हृदय रोगी की अंगुलियों के प्रथम पोर अपेक्षाकृत मोटे हो जाते हैं।

  क्योंकि हर व्यक्ति की विचार प्रक्रिया उसके परिवेश और उसकी परिस्थितियों पर निर्भर होती है; इसी कारण उसकी हथेली की बनावट और हाथ की रेखाएं भी अलग ही होती हैं। हर व्यक्ति के हाथ की अंगुलियों पर बने चिन्ह भी अलग होते हैं। जिन्हें विश्व ने उसकी अलग पहचान के रूप में व्यापक रूप से स्वीकृत किया है। आज हर देश में व्यक्ति की पहचान उसके अंगूठे और अंगुलियों के चिन्हों के आधार पर की जाती है, जो कि आज तक एक भी मनुष्य की दूसरे के समान नहीं पाई गई है।



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